dcsimg

मांसाहारी गण ( Hindi )

provided by wikipedia emerging languages
 src=
मांसाहारी गण का प्रसिद्ध जन्तु टाइगर
चित्र:Male Lion and Cub Chitwa South Africa Luca Galuzzi 2004
नर सिंह एवं शावक मांस का भक्षण करते हुए

मांसाहारी गण (Carnivora) मांसाहारी स्तनियों का गण है। इसके अंतर्गत सिंह, बाघ, चीता, पालतू कुत्ते एवं बिल्लियाँ, सील, लोमड़ी लकड़बग्घा, रीछ आदि जीव आते हैं। इस गण के लगभग २६० वंश वर्तमान है और वर्तमान वंश के बराबर वंश विलुप्त हो गए हैं। तृतीयक (Tertiary) युग के आरंभ में इस गण के जीवों की उत्पत्ति हुई, तब से अब तक ये अपना अस्तित्व बनाए रखने में पर्याप्त सफल रहे हैं।

इस गण के प्राणी साहसी, बुद्धिमान्‌ एवं सक्रिय होते हैं। इनके देखने और सूँघने की शक्ति तीव्र होती है। इनके चार रदनक (canine) दाँत होते हैं, जो मांस फाड़ने के अनुकुल होते हैं। इस गण की अनेक जातियों की पादांगुलियाँ दृढ़ एवं तेज नखर (claw) से युक्त होती है। ये नखर शिकार को पकड़ने में सहायक होते हैं। मांसाहारी गण के प्राणी छोटे विस्त्रा (weasel) से लेकर बड़े रीछ के आकार तक के होते हैं और इनका भार लगभग २० मन तक हो सकता है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर संसार के प्रत्येक भाग में मांसाहारी गण के जीव पाये जाते हैं। ध्रुवीय लोमड़ी और रीछ ही केवल ऐसे स्थल स्तनी हैं, जो सुदूर उत्तर में पाए जाते हैं। जलसिंह (sea lion) उत्तर ध्रुवीय एवं दक्षिण ध्रुवीय समुद्र में पाए जाते हैं। गंध मार्जार (civet) उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका को छोड़कर सभी देशों में पाया जाता है। अफ्रीका में असली रीछ नहीं पाये जाते। पंडा को छोडकर सभी रैकून (racoon) अमरीका में ही पाये जाते हैं। यद्यपि कुछ मांसाहारी प्राणी मनुष्य और पालतु पशुओं को हानि पहुँचाते हैं, तथापि इनमें से अधिकांश समूरधारी (furry) और कृतक भक्षक होने के कारण महत्वपूर्ण है। कृंतक (rodente) कृषि को हानि पहुँचाते हैं, पर मांसाहारी गण के अधिकांश प्राणी कृंतकों का भक्षण कर इनकी संख्यावृद्धि को रोकते हैं। इस गण के सभी प्राणी मांसाहारी ही हों, यह आवश्यक नहीं है। इस गण के कुछ प्राणी, जैसे अधिकतर रीछ, शाकाहारी होते हैं।

विशिष्ट लक्षण (Distinctive characters)

इस गण के प्राणियों को स्तनी वर्ग के अन्य गणों से अलग करने के लिये कोई एक विशेष लक्षण नहीं बताया जा सकता, किंतु संरचनात्मक लक्षणों के समूह द्वारा मांसाहारी गण के जीवों को अन्य गणों से पृथक्‌ किया जाता है। ये लक्षणसमूह निम्नलिखित है:

(१) प्रत्येक मांसाहारी के प्रत्येक पाद में चार पादांगुलियाँ होती हैं और प्रथम पादांगुलि, शेष पादांगुलियों की प्रतिरोध्य नहीं होती। अंगुलिपर्व में सुगठित नखर होते हैं, किंतु नख या खुर नहीं होते।

(२) प्रत्येक कपोल पर स्पर्श नासा बाल (tactile vibrissae) के दो गुच्छे होते हैं, जो हिस्त्र जंतुओं में पर्याप्त बड़े तथा वनस्पतिभक्षियों में छोटे होते हैं।

(३) ऐसे सभी प्राणियों के पूँछ होती है।

(४) जनन अंग और गुदा पृथक्‌-पृथक्‌ छिद्रों में खुलते हैं।

(५) स्तन कभी भी पूर्णत: अंसीय (pectoral) नहीं होते।

(६) मस्तिष्क अच्छे प्रकार से या साधारण संवलित (convoluted) होता है।

(७) इनमें तीन प्रकार के दाँत होते हैं : कृंतक (incisors), रदनक तथा कपोल दाँत (Cheek teeth) ऊपर और नीचे के जबड़ों में कृंतक दाँत होते हैं। इनमें मध्य के दाँत, अगल-बगल के दाँतों से बड़े होते हैं। रदनक दाँत सदा बड़े होते हैं और दोनों जबड़ो में होते हैं। कपोल दाँत जड़दार होते हैं, किंतु ये दृढ़ स्थायी नहीं होते।

(८) गर्भाशय दो भागों में बँटा रहता है और अपरा (placenta) प्रपाती (deciduate) होती है।

वर्गीकरण (Classification)

मांसाहारी गण के वर्तमान जीवों को दो उपगणों में विभक्त किया गया है:

(१) फिसिपीडिया (Fissipedia) तथा

(२) पिन्नीपीडिया (Pinnipidea)।

उपर्युक्त दो जीवित उपगण जिस उपगण से निकले हैं, वह क्रव्यदंत (creodonta) है और इस उपगण के प्राणी तृतीयक कल्प के प्रारंभ में ही विलुप्त हो गए थे।

फिसिपीडिया

इस उपगण के प्राणी विलग्नांगुल होते हैं तथा इनके कपोल दाँत विभिन्न प्रकार के होते हैं। इस उपगण को दो अधिकुलों में विभक्त किया गया है :

(१) आर्क्टोइडिया (Arctoidea) या कानोइडिया (Canoidea) तथा

(२) एलूराइडिया (Aeluroidea) या फेलोइडिया (Feloidea)।

आर्क्टोइडिया के अंतर्गत कुत्ता, भालू रैकून तथा विस्त्रा कुल आते हैं और एलूराइडिया के अंतर्गत बिल्ली, लकड़बग्घा, गंधमार्जार कुल आते हैं (देखें, कुत्ता, गंधमार्जार, चीता बाघ, बिल्ली, भालू, सिंह)।

पिन्नीपीडिया

इस उपगण के प्राणियों के अग्र पाद छोटे होते हैं और सब पैर चप्पू के आकार के होते हैं। पश्चपादों की पहली और पाँचवीं पादागुलियाँ शेषदांगुलियों से लंबी होती है। कपोल दंत एक जैसे होते हैं। इस गण के अंतर्गत तीन कुल हैं : ओडोबीनिडी (Odobaenidae), फोसिडी (Phocidae) तथा ओटारिइडी (Otariidae)। ओडोबीनिडी के अंतर्गत वालरस, फोसिडी के अंतर्गत सील एवं ओटारिइडी के अंतर्गत जलसिंह तथा फरवाले सील आते हैं (देखें सील)।

मांसाहारी गण के जीवाश्म

आधुनिक मांसाहारी गण के सामान्य प्राणियों के जीवाश्मों के साथ साथ अनेक विलुप्त प्राणियों के जीवाश्म भी अत्यंत नूतन (pleistocene) युग की चट्टानों में पाए गए हैं। सबसे प्राचीन मांसाहारी गण वह छोटा क्रिओडॉराटा था जिसके जीवाश्म उत्तरी अमरीका के पुरानूतन (palaeocene) युग के आरंभ की चट्टानों में पाए गए हैं। उत्तरी अमरीका में मध्यपुरानूतन युग की चट्टानों में मीआसिड (Miacid) गण के जीवों के जीवाश्म मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि उस काल में इस गण के जीव उत्पन्न हो गए थे। अ्फ्रीका की मध्यनूतन युग के आरंभ की चट्टानों और भारत की अतिनूतन (Pliocene) युग की चट्टानों से प्राप्त जीवाश्मों से ज्ञात होता है कि उस काल मेंश् अंतिम क्रिओडॉराटा जीवित थे क्रिओडॉराटा और फिसीपीडिया दानों गण के संबंध संदेहयुक्त हैं, यद्यपि दोनो के अवशेष एक ही काल की चट्टानों में मिलते हैं, जलव्य्घ्राा के जीवाश्म मध्यनूतन युग की चट्टानों में मिलते हैं जिनसे पता लगता है कि उनमें पिन्नीपीडिया गण के सभी लक्षण उपस्थित थे। जलव्य्घ्राा के पूर्वज के संबंध में कोई विशेष संकेत नहीं मिलते।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

license
cc-by-sa-3.0
copyright
विकिपीडिया के लेखक और संपादक

मांसाहारी गण: Brief Summary ( Hindi )

provided by wikipedia emerging languages
 src= मांसाहारी गण का प्रसिद्ध जन्तु टाइगर चित्र:Male Lion and Cub Chitwa South Africa Luca Galuzzi 2004 नर सिंह एवं शावक मांस का भक्षण करते हुए

मांसाहारी गण (Carnivora) मांसाहारी स्तनियों का गण है। इसके अंतर्गत सिंह, बाघ, चीता, पालतू कुत्ते एवं बिल्लियाँ, सील, लोमड़ी लकड़बग्घा, रीछ आदि जीव आते हैं। इस गण के लगभग २६० वंश वर्तमान है और वर्तमान वंश के बराबर वंश विलुप्त हो गए हैं। तृतीयक (Tertiary) युग के आरंभ में इस गण के जीवों की उत्पत्ति हुई, तब से अब तक ये अपना अस्तित्व बनाए रखने में पर्याप्त सफल रहे हैं।

इस गण के प्राणी साहसी, बुद्धिमान्‌ एवं सक्रिय होते हैं। इनके देखने और सूँघने की शक्ति तीव्र होती है। इनके चार रदनक (canine) दाँत होते हैं, जो मांस फाड़ने के अनुकुल होते हैं। इस गण की अनेक जातियों की पादांगुलियाँ दृढ़ एवं तेज नखर (claw) से युक्त होती है। ये नखर शिकार को पकड़ने में सहायक होते हैं। मांसाहारी गण के प्राणी छोटे विस्त्रा (weasel) से लेकर बड़े रीछ के आकार तक के होते हैं और इनका भार लगभग २० मन तक हो सकता है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर संसार के प्रत्येक भाग में मांसाहारी गण के जीव पाये जाते हैं। ध्रुवीय लोमड़ी और रीछ ही केवल ऐसे स्थल स्तनी हैं, जो सुदूर उत्तर में पाए जाते हैं। जलसिंह (sea lion) उत्तर ध्रुवीय एवं दक्षिण ध्रुवीय समुद्र में पाए जाते हैं। गंध मार्जार (civet) उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका को छोड़कर सभी देशों में पाया जाता है। अफ्रीका में असली रीछ नहीं पाये जाते। पंडा को छोडकर सभी रैकून (racoon) अमरीका में ही पाये जाते हैं। यद्यपि कुछ मांसाहारी प्राणी मनुष्य और पालतु पशुओं को हानि पहुँचाते हैं, तथापि इनमें से अधिकांश समूरधारी (furry) और कृतक भक्षक होने के कारण महत्वपूर्ण है। कृंतक (rodente) कृषि को हानि पहुँचाते हैं, पर मांसाहारी गण के अधिकांश प्राणी कृंतकों का भक्षण कर इनकी संख्यावृद्धि को रोकते हैं। इस गण के सभी प्राणी मांसाहारी ही हों, यह आवश्यक नहीं है। इस गण के कुछ प्राणी, जैसे अधिकतर रीछ, शाकाहारी होते हैं।

license
cc-by-sa-3.0
copyright
विकिपीडिया के लेखक और संपादक