भड़भाड़, सत्यानाशी या घमोई (वानस्पतिक नाम:Argemone mexicana) एक अमेरिकी वनस्पति है, लेकिन भारत में यह सब स्थानों पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोड़ने से उसमें से स्वर्ण सदृश, पीतवर्ण (पीले रंग) का दूध निकलता है, इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते है। सत्यानाशी का फल चौकोर, कांटेदार, प्याले-जैसा होता है, जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे काले बीज भरे रहते हैं, जो जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसको भड़भांड़ या भड़भड़वा भी कहते है। अवधी में इसे कुटकुटारा कहते है। इस वनस्पति के सारे अंगों पर कांटे होते है। आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी के नाम से लिखा है[1]।
इसके बीज जहरीले होते हैं। कभी-कभी सरसों में इसे मिला देने से उसके तेल का उपयोग करने वालों की मृत्यु भी हो जाती है। इसके बीज मिली हुई सरसों के तेल के प्रयोग करने वालो को पेट की झिल्ली ( पेरिटोनियम ) में पानी भरने का एक रोग एपिडेमिक ड्रॉप्सी भी हो जाता है।
व्रण/घाव तथा त्वचारोगों में सत्यानाशी का प्रयोग
सत्यानाशी के पत्ते का रस/दूध कीटाणुनाशक एवं विषाणु नाशक होता है।
इसके रस को लगाने से किसी भी प्रकार का घाव ठीक है जाता है । पुराने से पुराना घाव भी ठीक करने में यह समर्थ है।
आयुर्वेद में तथा भारतीय समाज में इसका प्रयोग कुष्ठ रोगों में किया जाता रहा है ।
यह इतना गुणी पौधा है कि कितना भी पुराना घाव हो या दाद, खाज, खुजली हो उसे चुटकियों ठीक कर देता है। यह बांझपन में भी उपयोगी है।
भड़भाड़, सत्यानाशी या घमोई (वानस्पतिक नाम:Argemone mexicana) एक अमेरिकी वनस्पति है, लेकिन भारत में यह सब स्थानों पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोड़ने से उसमें से स्वर्ण सदृश, पीतवर्ण (पीले रंग) का दूध निकलता है, इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते है। सत्यानाशी का फल चौकोर, कांटेदार, प्याले-जैसा होता है, जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे काले बीज भरे रहते हैं, जो जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसको भड़भांड़ या भड़भड़वा भी कहते है। अवधी में इसे कुटकुटारा कहते है। इस वनस्पति के सारे अंगों पर कांटे होते है। आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी के नाम से लिखा है।
इसके बीज जहरीले होते हैं। कभी-कभी सरसों में इसे मिला देने से उसके तेल का उपयोग करने वालों की मृत्यु भी हो जाती है। इसके बीज मिली हुई सरसों के तेल के प्रयोग करने वालो को पेट की झिल्ली ( पेरिटोनियम ) में पानी भरने का एक रोग एपिडेमिक ड्रॉप्सी भी हो जाता है।