एरंड कुल अथवा यूफोर्बिएसी (Euphorbiaceae) द्विबीजपत्रक पौधों का एक बड़ा कुल है। इसमें प्राय: 220 प्रजाति (जेनेरा) और लगभग 4,000 जातियाँ (स्पीशीज़) हैं, जो अधिकांश उष्ण प्रदेशों में होती हैं, किंतु सामान्यत: उत्तरी ध्रुव में प्रदेश को छोड़ संसार के सभी स्थानों में पाई जाती हैं। इस कुल मे जड़ी, बूटी तथा झाड़ियों से लेकर बड़े वृक्ष तक सभी पाए जाते हैं। एरंड कुल के कुछ पौधे, विशेषत: दुग्धी (यूफ़ारबिया) की कुछ उपजातियाँ, शुष्कोद्भिद होती हैं। इनमें पत्तियाँ नहीं होती और जब पुष्परहित होती है तो देखने में नागफण (कैक्टस) की तरह प्रतीत होती हैं, परंतु दोनों में यह अंतर होता है कि दुग्धी में सफेद दूध (लैटेक्स) होता है, कैक्टस में नहीं।
इस कुल के फूल एकलिंगी होते हैं तथा दोनों लिगों के फूल, या तो एक ही पेड़ पर अथवा अलग अलग पेड़ों पर, नाना प्रकार के पुष्पक्रमों में लगते हैं। पहली शाखाएँ अधिकतर एकवर्ध्यक्षीय तथा बादवाली बहुवर्ध्यक्षीय होती है। पुष्पक्रम भी अधिकतर एकलिंगी फूलों के होते हैं। नर पुष्पक्रम में बहुत से फूल होते हैं, परंतु नारी पुष्पक्रम में एक ही फूल होता है। यूफारबिया के पुष्पक्रम को कटोरिया (साएथियम्) कहते हैं। यह देखने में द्विलिंगी पुष्प मालूम होता है, परंतु वास्तव में यह एक बहुवर्ध्यक्षीय पुष्पक्रम है जिसका अवसान पुष्प मालूम होता है, परंतु वास्तव में यह एक बहुवर्ध्यक्षीय पुष्पक्रम है जिसका अवसान पुष्प नग्न मादा फूल होता है। इसके नीचे चार पाँच निपत्र (ब्रैक्ट) होते हैं, जो देखने में बाह्य दल की भाँति प्रतीत होते हैं। प्रत्येक निपत्र के कक्ष में नर फूलों की वार्छिक बहुवर्ध्यक्ष शाखा होती है और प्रत्येक नर फूल में केवल एक ही पुंकेसर होता है। नालपरिपुष्प (ऐंथेस्टिमा ए.जुस.) के नर फूल में एक ही पुंकेसर होता है और यह परिदलपुंज (कैलिक्स) युक्त होता है। यूफ़ोरबिया के नर पुष्प में एक नग्न पुंकेसर होता है तथा उसके वृंत पर जोड़ होता है।
एरंड कुल में आर्थिक महत्व के पौधों के वर्ग निम्नलिखित हैं: चुक्रदारु (बिस्कोफ़िया), पुत्रंजीव, समुद्गदारु (बक्सस), कांपिल्य (मेलोटस), तोयपिप्पली (सेपियम), जयपाल (क्रोटोन), वनैरंड (जैटरोफ़ा), रबर का वृक्ष (हेविया), मलयाक्षोट (एल्युराइटिस) और एरंड (रिसिनस) इत्यादि। पारा रबर (हेविया ब्राज़िलियेसिंस) और सियारा रबर (मनीहोट ग्लेज़ियोबाई) रबर के उत्पादन के लिए, सामान्य एरंड (रिसिनस कम्युनिस) एरंड तेल (रेंड़ी के तेल) के लिए, गिरि मलयाक्षोट (एल्युराइटिस मोनटाना), ए. फ़ोरडाइ तथा सामान्य तोयपिप्पली (सेपियम सेबीफरम) क्रमानुसार चीनी टुंगतेल तथा लालामूल तेल (स्टिल्लिंगिया ऑयल) के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं।
भारत में पाए जानेवाले इस कुल के आर्थिक महत्व के पौधे निम्नलिखित हैं :
देहरादून स्थित वन अनुसंधानशाला और राष्ट्रीय रसायनशाला, पूना, के अनुसंधानकर्ताओं ने कमला पेड़ के बीजों में से विशिष्ट रीति से तेल निकालकर तथा रंगलेप उद्योग में उसकी आर्थिक उपयोगिता सिद्ध करके उसका भविष्य उज्वल कर दिया है (सद्गोपाल, इज़ टुंग ऑयल सो नेसेसरी?, पेंट इंडिया, बंबई, वर्ष 2, सं. 5 अगस्त 1952, पृ. 9-14, 44-45)। इसी प्रकार सद्गोपाल और नारंग ने तारचर्बी और शमशाद-पापड़ी के बीजतेलों का भी आर्थिक महत्व रंगलेप उद्योग में दर्शाया है (इंडियन स्टिल्लिंगिया ऑयल ऐंड टैलो, जर्नल ऑव दि अमरीकन ऑयल केमिस्ट्स सोसायटी, वर्ष 35, फरवरी, 1958, पृ. 68-71; ए न्यू डांइग ऑयल फ्ऱॉम द सीड्स ऑव बक्सस सैमपरवाइरैंस, लिन्न., सोप पर्फ़्यूम्स ऐंड कॉस्मेटिक्स, भाग 31, अंक 9, सितंबर 1958, 856-59)। लकड़ी और पत्थर के कोयलों के चूरे और छोटे टुकड़ों को पुन: जमाकर जलाने लायक ईधन की टिकिया बनाने में भी कमला के बीजों की उपादेयता महत्वपूर्ण है (सद्गोपाल और डोभाल, कमला सीड्स फ़ॉर ब्रिकेट्टिंग ऑव चारकोल, कोलडस्ट्स ऐंड वेस्टस् , पेंट इंडिया, वर्ष 7, अं. 3, पू. 29-31)। अतएव स्पष्ट है कि एरंड कुल के पौधे भारत की आर्थिक उन्नति में सहायक हो सकेंगे।
एरंड कुल अथवा यूफोर्बिएसी (Euphorbiaceae) द्विबीजपत्रक पौधों का एक बड़ा कुल है। इसमें प्राय: 220 प्रजाति (जेनेरा) और लगभग 4,000 जातियाँ (स्पीशीज़) हैं, जो अधिकांश उष्ण प्रदेशों में होती हैं, किंतु सामान्यत: उत्तरी ध्रुव में प्रदेश को छोड़ संसार के सभी स्थानों में पाई जाती हैं। इस कुल मे जड़ी, बूटी तथा झाड़ियों से लेकर बड़े वृक्ष तक सभी पाए जाते हैं। एरंड कुल के कुछ पौधे, विशेषत: दुग्धी (यूफ़ारबिया) की कुछ उपजातियाँ, शुष्कोद्भिद होती हैं। इनमें पत्तियाँ नहीं होती और जब पुष्परहित होती है तो देखने में नागफण (कैक्टस) की तरह प्रतीत होती हैं, परंतु दोनों में यह अंतर होता है कि दुग्धी में सफेद दूध (लैटेक्स) होता है, कैक्टस में नहीं।