फ़िन की बया एक छोटी बुनकर चिड़िया की जाति है जो भारत और नेपाल में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की घाटियों में पाई जाती है। इसकी दो उपजातियाँ पहचानी जाती हैं—प्लोसिअस मॅगरहिन्चस, जो कि कुमाऊँ में और प्लोसिअस सलीमअली जो कि पूर्वी तराई में पाई जाती हैं।
जब ह्यूम को नैनीताल के पास कालाढूंगी से इस जाति का नमूना मिला तो उन्होंने इसका नामकरण किया। यह जाति फ़्रॅन्क फ़िन द्वारा कोलकाता के पास के तराई इलाके में दुबारा खोजी गई और इसे उनका नाम मिला।[2] ओट्स ने सन् १८८९ में इसे पूर्वी बया नाम दिया जबकि स्टुअर्ट बेकर ने सन् १९२५ में इसे फ़िन की बया नाम दिया।[3][4]
यह ऊँची घास के मैदानों जैसे सरकंडा, काँस, बेंत इत्यादि में रहना पसन्द करते हैं। यदि धान और गन्ने की खेती इन मैदानों के आस-पास होती है तो यह वहाँ भी अपना बसेरा बना लेते हैं। इन पक्षियों का मूल निवास पूर्वी नेपाल और आसाम में है हालांकि यह उत्तरी भारत के तराई क्षेत्र में यहाँ-वहाँ कम संख्या में पाये जाते हैं। उत्तर प्रदेश और उससे लगे पश्चिमी नेपाल में एक-दो इलाकों में यह पाये जाते हैं।[5]इस पक्षी का फैलाव अपने आवासीय क्षेत्र में भी काफ़ी संकुचित रहा है और पिछले कुछ दशकों में इनका अपने इन संकुचित इलाकों में से ओझल हो जाना इस तरफ़ इंगित करता है कि इनकी संख्या में गिरावट हो रही है। हाल ही में नेपाल में खोजा गया एक समूह ५० से भी कम पक्षियों का है और यह संख्या अनियमित है। इस पक्षी को भारत में असम के काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, दिबरू-साइखोवा राष्ट्रीय उद्यान, मानस राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल के जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान तथा उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में निश्चित रूप से देखा गया है।[6][7] सन् २००१ में इसकी संख्या २५०० से ९९९९ वयस्कों की आंकी गई थी लेकिन हाल के शोधों से यह अनुमान लगाया गया है कि इस पक्षी के पूरे विश्व में ३००० से भी कम प्रजनन योग्य वयस्क बचे हैं।[6]
यह पक्षी नेपाल के सुकला फांटा वन्यजीव अभयारण्य में आसानी से दिख जाता है जो कि इसके आवास की पूर्वी सीमा है।[8]
यह तकरीबन १७ से.मी. का होता है और इसके सिर, छाती तथा पेट और पिट्ठू पीले रंग के होते हैं। कान और आँख का हिस्सा काला होता है। इसकी छाती में भी एक काला धब्बा होता है। पंख काले होते हैं जिनकी बाहरी रेखा पीली होती है। मादा का रंग नर के मुकाबले में थोड़ा फीका होता है, विशेषकर सिर और गर्दन का इलाका। यह पक्षी झुण्ड में रहना तथा भोजन करना पसन्द करता है और काफ़ी शोरगुल करता है। यह झुण्डों में ही प्रजनन करना पसन्द करते हैं और मई से सितंबर में प्रजनन करते हैं।[6] इसका घोंसला भारत में पाये जाने वाले अन्य बुनकर पक्षियों से अलग होता है लेकिन अन्य बुनकर पक्षियों की तरह ही यह भी घास और पत्तियों के रेशों से अपना घोंसला बनाते हैं। यह जाति अपने पूरे घोंसले में अन्दर से परत चढ़ाता है। अन्य बुनकर पक्षी अन्दर से केवल फ़र्श पर अस्तर लगाते हैं। इनके घोंसले गोलाकार होते हैं और आसानी से दिख जाते हैं क्योंकि नर घोंसले के आस-पास की पत्तियों का इस्तेमाल घोंसला बनाने के लिए कर लेते हैं।
नर एक के बाक एक १ से ४ मादाओं के साथ समागम करता है। एक बार में मादा २ से ४ अण्डे देती है। अकेली मादा ही अण्डे सेती है और सेने के १४ से १५ दिनों में अण्डों से बच्चे निकलते हैं।
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) |accessdate=
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मान (मदद). Our Nature. पाठ "pages" की उपेक्षा की गयी (मदद); पाठ " 56-81" की उपेक्षा की गयी (मदद) फ़िन की बया एक छोटी बुनकर चिड़िया की जाति है जो भारत और नेपाल में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की घाटियों में पाई जाती है। इसकी दो उपजातियाँ पहचानी जाती हैं—प्लोसिअस मॅगरहिन्चस, जो कि कुमाऊँ में और प्लोसिअस सलीमअली जो कि पूर्वी तराई में पाई जाती हैं।
जब ह्यूम को नैनीताल के पास कालाढूंगी से इस जाति का नमूना मिला तो उन्होंने इसका नामकरण किया। यह जाति फ़्रॅन्क फ़िन द्वारा कोलकाता के पास के तराई इलाके में दुबारा खोजी गई और इसे उनका नाम मिला। ओट्स ने सन् १८८९ में इसे पूर्वी बया नाम दिया जबकि स्टुअर्ट बेकर ने सन् १९२५ में इसे फ़िन की बया नाम दिया।