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Sugorisia ( Vec )

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Glycyrrhiza glabra

Ła sugorigorisia (o anca sugorisia) (nome sientifico Glycyrrhiza glabra) ła xe na pianta ke dura senpre, alta fin a 2 metri, deła fameja dełe Leguminose. Laktritze in todesco, licorice in inglese e liquirizia in tałjàn, ła xe originaria deł'Asia sudocidentałe e deł'Egito, ma i ła conoseva anca i Cinesi e i antichi Greci. A portarla in Eoropa xe sta i frati dominicani 'ntel 14° secoło.

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Bastonsini de sugorigorisia

Łe raixe vien doparà in tante maniere, parkè łe ga dełe sostanse (açido glicirisico, glicirisina) co diverse proprietà. Intanto łe xe dolsi e ałora łe se mastega cusì come ke łe xe (bastonsini de sugorigorisia) o se ghin fa gełati, caramełe, spaghi, ciunghe, liquori o łe se mete drento ła graspa.

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Spaghi de sugorigorisia

Ła sugorigorisia ła ga anca proprietà protetive par ła mucosa del stomego e ła va ben par ki ke ga ła gastrite; pare ke ghe sia anca na çerta atività antinfiamatoria e stimołante łe difese imunitarie. I efeti cołaterałi, quando ke se ghin magna masa, xe ła ritension idrica e ła presion alta. Vien perso anca potasio e sto fato pol far dani al core e ai muscołi. Par ste rason xe mejo ke quei ke ga ła presion alta e łe done insinte no i fasa uso de sugorigorisia.

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Sus ( Diq )

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Sus, jew nebatê gemo. Tıb dı ca gêno. Meywey cı erdi bın deyo.

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Glycyrrhiza glabra - MHNT
  1. 1.0 1.1 Xetay lua: unknown error.
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Sus: Brief Summary ( Diq )

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 src= Glycyrrhiza glabra - MHNT ↑ Xetay lua: unknown error.
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मुलेठी ( Maithili )

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मुलेठी या मुलहठी या यष्टिमधु एक झाड़ीनुमा पौधा होइत अछि । एकर वैज्ञानिक नाम ग्लिसीर्रहिजा ग्लाब्र (Glycyrrhiza Glabra) कहैत अछि । एकरा संस्कृत भाषा मे मधुयष्‍टी, बङ्गला भाषामे जष्टिमधु, मलयालममे इरत्तिमधुरम, तथा तमिलमे अतिमधुरम कहैत अछि । एहिमे गुलाबी आ जामुनी रङ्गक फूल होइत अछि । एकर फल लम्‍बा चपटे तथा कांट होइत अछि । एकर पत्तिसभसँ युक्‍त होइत अछि । मूल जड़सँ छोट-छोट जड़ निकलैत अछि । एकर खेती नेपालभारतमे कएल जाइत अछि ।

मुलहठी एक प्रसिद्ध आ सर्वसुलभ जड़ी छी । काण्ड आ मूल मधुर भेला कारण मुलहठीकें यष्टिमधु कहल जाइत अछि । मधुक क्लीतक, जेठीमध तथा लिकोरिस एकर अन्य नाम छी ।

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ सामग्रीसभ

  1. "Glycyrrhiza glabra information from NPGS/GRIN", www.ars-grin.gov, अभिगमन तिथि ६ मार्च २००८

बाह्य जडीसभ

एहो सभ देखी

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यष्टी ( Sânscrito )

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यष्टी
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त्वक्-सहितं यष्टीमूलम्

एषा यष्टी अपि भारते वर्धमानः कश्चन सस्यविशेषः । इयम् अपि सस्यजन्यः आहारपदार्थः । एषा यष्टी आङ्ग्लभाषायां Liquorice इति उच्यते । अस्याः सस्यशास्त्रीयं नाम अस्ति Glycyrrhiza glabra इति । एषा यष्टी प्रायः औषधत्वेन एव उपयुज्यते सर्वत्र । एतस्याः यष्ट्याः अपरं नाम अस्ति ज्येष्ठमधुः इति । अस्य यष्टिसस्यस्य मूलम् औषधत्वेन उपयुज्यते । अन्यानि अङ्गानि तु न उपयुज्यन्ते ।

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यष्टीसस्यम्
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यष्टीशाखा, पुष्पं, फलं, बीजम्, अङ्कुरः चापि

आयुर्वेदस्य अनुसारम् अस्याः यष्ट्याः स्वभावः

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यष्टिमूलस्य खण्डाः

एषा यष्टी पचनार्थं गुरुः । एषा स्निग्धगुणयुक्ता, शीतवीर्या च । एषा यष्टी जीर्णानन्तरं मधुरविपाका भवति ।

“यष्टी हिमा गुरुः स्वाद्वी चक्षुष्या बलवर्णकृत् ।
सुस्निग्धा शुक्रला केश्या स्वर्या पित्तनिलास्रजित् ।
व्रणशोथविषच्छर्दितृणाम्लानिक्षयापहा ॥“ (भावप्रकाशः)
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Glycyrrhiza glabra
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एकं यष्टीमूलम्
१. एषा यष्टी चक्षुष्या अस्ति । तन्नाम नेत्रस्य हितकरी ।
२. एषा यष्टी शरीरस्य बलं वर्णं च वर्धयति ।
३. एषा यष्टी मुखे अरुचिं निवार्य रुचिं जनयति ।
४. एषा यष्टी शरीरे शुक्रधातुं वर्धयति । केशाणां वर्धनम् अपि करोति ।
५. एषा यष्टी दाहं शमयति । एषा यष्टी वेदनास्थापिका अपि ।
६. एषा यष्टी वातं पित्तं च हरति । वमनं निवारयति अपि ।
७. एषा यष्टी कण्ठरोगान्, अतिरक्तस्रावं चापि निवारयति ।
८. एषा यष्टी शोथं शमयति । कफनिस्सारिका चापि ।
९. एषा यष्टी स्वरम् उत्तमं करोति । स्तन्यं वर्धयति च ।
१०. एषा यष्टी व्रणरोपिका । विषबाधां छर्दिं च शमयति ।
११. अस्य यष्टिसस्यस्य मूलं ३ – ५ ग्रां यावत् औषधत्वेन दातुं शक्यते ।
१२. वातजन्यः शुष्ककासः बाधते चेत् यष्टीं, द्राक्षाम्, आमलकस्य चूर्णं च ६ ग्रां यावत् पेषयित्वा १२ ग्रां यावत् घृतं योजयित्वा क्षीरेण सह पातव्यम् । पेषणं कृत्वा सज्जीकृतं मिश्रणं सम्यक् भागत्रयं कृत्वा प्रतिदिनं त्रिवारं पातव्यम् । एवं ३ – ४ दिनानि यावत् करणाभ्यन्तरे कासः अपगच्छति ।
१३. पित्तजन्यः कासः बाधते चेत् यष्टीम्, आमलकम्, अळलेफलं च समप्रमाणेन योजयित्वा चूर्णीकरणीयम् । तत् चूर्णं वस्त्रेण शोधयित्वा दिने त्रिवारं ५ ग्रां यावत् शर्करां क्षीरं च योजयित्वा ३ - ४ दिनानि यावत् पातव्यम् ।
१४. अर्धचमसपरिमितां यष्टीं चूर्णीकृत्य चषकपरिमितं जलं योजयित्वा सम्यक् क्वथनीयम् । जलं यदा अर्धचषकपरिमितं भवति तदा तत् कषायं शोधयित्वा तत्र मधु योजयित्वा चमसद्वयं यावत् च दिने द्विवारम् इव ३ – ४ दिनानि यावत् सेवनीयम् । तेन कफबाधा निवारिता भवति । कफस्य शुष्कतायाः कारणतः हृदये कण्ठे वा वेदना जायते चेत् सा अपि निवारिता भवति ।
१५. यष्टीम्, अर्धचमसपरिमितं निम्बूकस्य रसं, चमसमितं मधु च योजयित्वा प्रतिदिनं त्रिवारम् इव सेवितं चेत् शुष्ककासः अपगच्छति ।
१६. यष्ट्याः तैलम् अपि उपयोक्तुं शक्यते । अस्याः यष्ट्याः विशेषरूपेण कोऽपि निषेधः नास्ति ।
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