मणिपुरी बटेर (Manipur Bush Quail) (Perdicula manipurensis) भारत में पाई जाने वाली बटेर पक्षी की एक क़िस्म है, जो कि पश्चिम बंगाल, असम, नागालैण्ड, मणिपुर और मेघालय के दलदली इलाकों में, जहाँ ऊँची घास होती है, पाया जाता है।
पहले इसकी आबादी पर्याप्त थी और यह अक्सर पूर्वोत्तर भारत में तथा उत्तर भारत, जो अब बांग्लादेश है, में देखा जा सकता था। लेकिन इसके आवास क्षेत्रों के या तो संकुचित होने से और या खण्डित होने से इसकी आबादी निरंतर कम होती जा रही है और इसी कारण से इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने असुरक्षित श्रेणी में रखा है।[1]
इस पक्षी को आख़िरी बार सन् १९३२ में देखा गया था और वैज्ञानिकों का यह मानना था कि यह विलुप्त हो गया है। लेकिन सन् २००६ में फिर से मानस राष्ट्रीय उद्यान में देखा गया हालांकि इसका चित्र नहीं उतारा जा सका और अब पक्षी प्रेमियों में यह रोमांच का विषय हो गया है।[2]
इसको मणिपुरी भाषा में लैंक्स सॉइबॉल कहते हैं।
हालांकि इस जाति का इसके शर्मीले स्वभाव के कारण कम ही अध्ययन हुआ है लेकिन पक्षी विज्ञानियों का यह मानना है कि इसके आहार में बीज (जिनमें घास के बीज भी शामिल हैं), झड़बेरी, छोटे कीड़े जैसे चींटियाँ, घास की जड़ें इत्यादि शामिल हैं। मणिपुर में लिये गये नमूनों के पेट से घास के बीज, जंगली दालें, चींटियाँ और भंवरे के डैनों जैसी चीज़ मिली। बंदी अवस्था में रखी एक मादा छोटे बीज, मकड़ी, मक्खी, इल्ली इत्यादि खाती थी लेकिन भंवरों और तिलचट्टों को नहीं खाती थी।[3]
वर्तमान में इस पक्षी के आंकड़ों में कमी के कारण भूतकाल में जो इस पर अध्ययन हुआ है उसका सहारा लेकर यह पाया गया कि प्रजनन के समय यह ज़मीन में एक छोटा सा गड्ढा करके कभी-कभी उसमें घास और पत्तियाँ बिछा देता था। अमूमन यह देखा गया था कि इसका प्रजनन काल मार्च में होता था लेकिन प्रजनन करते हुये जोड़े मई के महीने में भी देखे गये थे और एक अवयस्क जनवरी के माह में भी देखा गया था।[3]
यह पक्षी अप्रवासी ही बतलाया गया है और अपने मूल निवास में ही रहना पसन्द करता है।[3]
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(मदद) मणिपुरी बटेर (Manipur Bush Quail) (Perdicula manipurensis) भारत में पाई जाने वाली बटेर पक्षी की एक क़िस्म है, जो कि पश्चिम बंगाल, असम, नागालैण्ड, मणिपुर और मेघालय के दलदली इलाकों में, जहाँ ऊँची घास होती है, पाया जाता है।
पहले इसकी आबादी पर्याप्त थी और यह अक्सर पूर्वोत्तर भारत में तथा उत्तर भारत, जो अब बांग्लादेश है, में देखा जा सकता था। लेकिन इसके आवास क्षेत्रों के या तो संकुचित होने से और या खण्डित होने से इसकी आबादी निरंतर कम होती जा रही है और इसी कारण से इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने असुरक्षित श्रेणी में रखा है।
इस पक्षी को आख़िरी बार सन् १९३२ में देखा गया था और वैज्ञानिकों का यह मानना था कि यह विलुप्त हो गया है। लेकिन सन् २००६ में फिर से मानस राष्ट्रीय उद्यान में देखा गया हालांकि इसका चित्र नहीं उतारा जा सका और अब पक्षी प्रेमियों में यह रोमांच का विषय हो गया है।
इसको मणिपुरी भाषा में लैंक्स सॉइबॉल कहते हैं।