Ang mga musang, pusang musang, sibet, o pusang sibet (Ingles: civet, civet cat[1]) ay mga maliliit na mamalyang madaling mahutok ang katawan o may malambot at magaang na indayog ng katawan. Karamihan sa mga hayop na ito na may pagkakahawig sa pusa ang arboryal (pampunongkahoy) o naninirahan sa mga puno, at katutubo sa mga tropikong pook ng Aprika at Asya. Nakalilikha ang mga musang ng musko o halimuyak na tanging nagmumula sa musang.
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Ang mga musang, pusang musang, sibet, o pusang sibet (Ingles: civet, civet cat) ay mga maliliit na mamalyang madaling mahutok ang katawan o may malambot at magaang na indayog ng katawan. Karamihan sa mga hayop na ito na may pagkakahawig sa pusa ang arboryal (pampunongkahoy) o naninirahan sa mga puno, at katutubo sa mga tropikong pook ng Aprika at Asya. Nakalilikha ang mga musang ng musko o halimuyak na tanging nagmumula sa musang.
Viverra es un genere de Viverrinae.
Вівэра (Viverra) — род драпежных жывёлаў зь сямейства вівэравых.
Даўжыня цела складае 59–95 см, даўжыня хваста — 30–48 см, маса — 5–11 кг. Гэта плямістыя жывёлы з завостранымі галовамі і адносна доўгімі нагамі. Падоўжаныя валасы ў верхняй частцы сьпіны ўтварае сьпінны грэбень. Сьпінны грэбень і ногі чорныя.
Усе віды засяляюць паўднёва-ўсходнюю Азію. Жывуць у розных месцах: лясы, хмызьнякі і лугі; таксама часта сустракаюцца ў бліжэйшых гарадах і вёсках.
Вядзе адзіночны і начны вобраз жыцьця. Здабыча: дробныя сысуны, птушкі, зьмеі, бясхвостыя, вусякі, рыбы і крабы; часам яны таксама спажываюць плады і карані.
Вівэра (Viverra) — род драпежных жывёлаў зь сямейства вівэравых.
गंधमार्जार या गंधबिलाव या कस्तूरी बिलाव (Civet) एक छोटा स्तनधारी जानवर होता है। इसका अकार कुछ-कुछ बिल्ली से मिलता है, जिस वजह से इसे "बिलाव" का नाम मिला है, हालाँकि यह बिल्ली की नस्ल का प्राणी नहीं है। इस से एक विशेष प्रकार की गंध आती है इसलिए इसके नाम में "कस्तूरी" शब्द जोड़ा जाता है। यह एशिया और अफ़्रीका के उष्णकटिबंध (ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में पाया जाता है। कस्तूरी बिलाव अपनी अधिकतर समय पेड़ों की टहनियों में ही गुज़ारना पसंद करते हैं।
गंधमार्जार मांसभक्षी, स्तनपोषी जीवों के विवेरिडी कुल (Family Viverridae) के जीव हैं। इनकी कई जातियाँ संसार में फैली हैं।
ये बिल्ली के पद के जीव हैं। इनके पैर छोटे और मुंह लंबा होता है। ये जीव पेड़ पर सरलता से चढ़ लेते है और रात में ही बाहर निकलते हैं। इन प्राणियों के दुम के नीचे एक गंधग्रंथि रहती है, जिससे गाढ़ा, गंधपूर्ण, पीला पदार्थ निकलता है। इसे व्यापारी लोग मुश्क या कस्तूरी में मिलाकर बेचते हैं। इसमें से सिवेटोन (Civetone) नामक कीटोन निकाला गया है। सुगंधित द्रव्यों के निर्माण में इसकी गंध प्रयुक्त होती है।
इनकी वैसी तो कई जातियाँ हैं जिनमें एक भारत का प्रसिद्ध कस्तूरी मृग (The Zibeth, Viverra zibetha) है, जो आस्ट्रेलिया से भारत और चीन तक फैला हुआ है। कद लगभग तीन फुट लंबा और 10 इंच ऊँचा होता है। रंग स्लेटी, जिसपर काली चित्तियाँ रहती हैं। दूसरा अफ्रीका का कस्तूरी मृग (African civet, Civette des civetta) है, जो इससे बड़ा ऊँचा तथा इससे गाढ़े रंग का और बड़े बालोवाला होता है। इसे लोग पालतू करके मुश्क निकालते हैं।
वैसे तो कस्तूरी बिलाव का शरीर बिल्ली जैसा होता है लेकिन इसका मुख कुछ-कुछ कुत्ते की भाँति आगे से खिंचा हुआ होता है। इनमें एक ग्रंथि होती है जिस से वह अपनी कस्तूरी जैसी महक पैदा करते हैं। ऐतिहासिक रूप से कस्तूरी बिलावों को मारकर उनकी ग्रंथि निकल ली जाती थी और उसका प्रयोग इत्तर बनाने के लिए किया जाता था। आधुनिक युग में जीवित पशु से ही बिना ग्रंथि निकले इस गंध के रसायन इकट्ठे किये जाते हैं।[1]
कस्तूरी बिलाव को अंग्रेज़ी में "सिवॅट" (civet) और मराठी में "उदमांजर" कहा जाता है।
गंधमार्जार या गंधबिलाव या कस्तूरी बिलाव (Civet) एक छोटा स्तनधारी जानवर होता है। इसका अकार कुछ-कुछ बिल्ली से मिलता है, जिस वजह से इसे "बिलाव" का नाम मिला है, हालाँकि यह बिल्ली की नस्ल का प्राणी नहीं है। इस से एक विशेष प्रकार की गंध आती है इसलिए इसके नाम में "कस्तूरी" शब्द जोड़ा जाता है। यह एशिया और अफ़्रीका के उष्णकटिबंध (ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में पाया जाता है। कस्तूरी बिलाव अपनी अधिकतर समय पेड़ों की टहनियों में ही गुज़ारना पसंद करते हैं।
गंधमार्जार मांसभक्षी, स्तनपोषी जीवों के विवेरिडी कुल (Family Viverridae) के जीव हैं। इनकी कई जातियाँ संसार में फैली हैं।
ये बिल्ली के पद के जीव हैं। इनके पैर छोटे और मुंह लंबा होता है। ये जीव पेड़ पर सरलता से चढ़ लेते है और रात में ही बाहर निकलते हैं। इन प्राणियों के दुम के नीचे एक गंधग्रंथि रहती है, जिससे गाढ़ा, गंधपूर्ण, पीला पदार्थ निकलता है। इसे व्यापारी लोग मुश्क या कस्तूरी में मिलाकर बेचते हैं। इसमें से सिवेटोन (Civetone) नामक कीटोन निकाला गया है। सुगंधित द्रव्यों के निर्माण में इसकी गंध प्रयुक्त होती है।
इनकी वैसी तो कई जातियाँ हैं जिनमें एक भारत का प्रसिद्ध कस्तूरी मृग (The Zibeth, Viverra zibetha) है, जो आस्ट्रेलिया से भारत और चीन तक फैला हुआ है। कद लगभग तीन फुट लंबा और 10 इंच ऊँचा होता है। रंग स्लेटी, जिसपर काली चित्तियाँ रहती हैं। दूसरा अफ्रीका का कस्तूरी मृग (African civet, Civette des civetta) है, जो इससे बड़ा ऊँचा तथा इससे गाढ़े रंग का और बड़े बालोवाला होता है। इसे लोग पालतू करके मुश्क निकालते हैं।
नीर बिरालो स्तनपायि वर्गमा पर्ने जनावर हो, जुन प्रायजसो अफ्रिका तथा दक्षिणएसिया क्षेत्रमा पाइन्छ । नेपालमा ठाउँ ठाउँमा यसलाई 'सिल' 'सिरु' र 'औलेकस्तुरी' पनि भन्ने गरेको पाइन्छ । नीर बिरालोको शारीरिक बनावट बिरालोको जस्तै भएतापनि यसको थुतुनो ओदको जस्तै हुन्छ। सामान्यतया यिनीहरूको लम्बाई लगभग १७ देखि २८ से मि र तौल लगभग ३ देखि १० के जि सम्म हुन्छ ।
नेपालमा नीर बिरालो तराईका मैदान देखि पहाडमा ७००० फिट उचाईमा पाईने गर्छ। यिनीहरू झुण्डमा आ-आफ्नो समुह बनाई बस्ने गर्छन । यिनिहरू दिनभरी झाडि, बुट्यान, पोथ्राहरू तथा रुखका टोड्का र कापमा गुँडुल्किएर आराम गर्छन र रातमा सक्रिय हुने गर्छन । नीर बिरालोले प्राय: फलफुल मात्र खान्छन, त्यसबाहेक मुसा, चरा तथा घरपालुवा पंक्षीहरूको शिकार गर्छन । कहीलेकाहीं यिनिहरूले स-साना किरा फटेङ्ग्रा, भ्यागुता र सर्प पनि खाने गर्छ ।
नीर बिरालोले एक कस्तूरी पैदा गर्छ (जसलाई सीविट पनि भनिन्छ) जुन अत्यधिक सुगन्धित हुन्छ र स्थिर तथा वासनायुक्त अत्तर बनाउनको लागि पनि बहुमूल्य मानिन्छ। दुवै भाले र पोथी नीर बिरालोहरू कडा गन्ध युक्त स्राव निर्माण गर्छन् , जुन सीविट Perineal ग्रन्थिहरू द्धारा उत्पादन हुन्छ। यही कस्तुरीको मद्दतबाट यिनीहरूले आफ्नो क्षेत्र छुट्याउने गर्दछन। नीर बिरालोले आफ्नो अगाडि शत्रु आएको खण्डमा शत्रुको आँखामा यो कस्तुरी पुर्याई आफु भाग्न सफल हुन्छ । यो या त पशु मारेर निकालिन्छ वा ज्युँदै पनि ग्रन्थिहरू बाट काटेर निकालिन्छ, अहिले सबैभन्दा बढी दोस्रो तरिकाको प्रयोग गरीएको पाइन्छ ।
पशुको संरक्षणको लागि विश्व सोसायटीले "कस्तूरी निकाल्ने कार्य जनावरको लागि क्रुरता हो" भन्ने कुरामा चासो ब्यक्त गरेको छ । यि चिंताहरूको नैतिक र सिंथेटिक विकल्पको उपलब्धताको बीच, बिश्वमा कस्तूरीको लागि नीर बिरालोको संख्या बढाउने अभ्यास अहिले कम भइरहेको छ ।
नीर बिरालो स्तनपायि वर्गमा पर्ने जनावर हो, जुन प्रायजसो अफ्रिका तथा दक्षिणएसिया क्षेत्रमा पाइन्छ । नेपालमा ठाउँ ठाउँमा यसलाई 'सिल' 'सिरु' र 'औलेकस्तुरी' पनि भन्ने गरेको पाइन्छ । नीर बिरालोको शारीरिक बनावट बिरालोको जस्तै भएतापनि यसको थुतुनो ओदको जस्तै हुन्छ। सामान्यतया यिनीहरूको लम्बाई लगभग १७ देखि २८ से मि र तौल लगभग ३ देखि १० के जि सम्म हुन्छ ।
புனுகுப்பூனை (Civet) ஆசிய ஆபிரிக்க வெப்பவலயக் காடுகளில் காணப்படும் சிறிய உடலமைப்புக் கொண்ட பாலூட்டி விலங்காகும். புனுகுப் பூனை வகையைச் சேர்ந்த பல வகை விலங்குகள் காணப்பட்ட போதிலும் பன்னாட்டு ரீதியில் இப்பதம் பொதுவில் ஆபிரிக்க புனுகுப்பூனை (African civet)யையே குறிப்பாகச் சுட்டும். இதற்குக் காரணம் வரலாற்று ரீதியில் உலகில் புனுகு எனப்படும் வாசணைத் திரவியம் இவ்விலங்கிலிருந்தே தயாரிக்கப்பட்டது. ஆயினும் தமிழரிடையில் புனுகுப்பூனை என்ற சொல் சிறிய இந்தியப் புனுகுப்பூனை (Viverricula indica) யைக் குறிக்கப் பயன்படுகின்றது.
புனுகுப்பூனை (Civet) ஆசிய ஆபிரிக்க வெப்பவலயக் காடுகளில் காணப்படும் சிறிய உடலமைப்புக் கொண்ட பாலூட்டி விலங்காகும். புனுகுப் பூனை வகையைச் சேர்ந்த பல வகை விலங்குகள் காணப்பட்ட போதிலும் பன்னாட்டு ரீதியில் இப்பதம் பொதுவில் ஆபிரிக்க புனுகுப்பூனை (African civet)யையே குறிப்பாகச் சுட்டும். இதற்குக் காரணம் வரலாற்று ரீதியில் உலகில் புனுகு எனப்படும் வாசணைத் திரவியம் இவ்விலங்கிலிருந்தே தயாரிக்கப்பட்டது. ஆயினும் தமிழரிடையில் புனுகுப்பூனை என்ற சொல் சிறிய இந்தியப் புனுகுப்பூனை (Viverricula indica) யைக் குறிக்கப் பயன்படுகின்றது.
పునుగు పిల్లి (ఆంగ్లం Civet) ( (Paradoxurus hermaphroditus) ) ఒక రకమైన జంతువు. Viverridae కుటుంబానికి చెందిన దీన్ని ఆంగ్లంలో Civet Cat అని, Toddy Cat అని అంటారు. పునుగు పిల్లులలో 38 జాతులు ఉన్నాయి. అయితే ఆసియా రకానికి విశిష్టత ఉంది. దీని గ్రంథుల నుండి జవాది లేదా పునుగు అనే సుగంధ ద్రవ్యము లభిస్తుంది.
పునుగు పిల్లి భారత్, శ్రీలంక, మియాన్మార్, భూటాన్, థాయ్ లాండ్, సింగపూర్, కంబోడియా, మలేషియా, జపాన్ వగైరా దేశాల్లో కనిపిస్తుంది.
ఆంధ్ర ప్రదేశ్లోని తిరుపతి వెంకన్నకు ప్రతి శుక్రవారం అభిషేకం తరువాత కాస్తంత పునుగు తైలాన్ని విగ్రహానికి పులుముతారు.1972లో కేంద్ర ప్రభుత్వం వన్య ప్రాణ సంరక్షణా చట్టం తెచ్చింది. టీటీడీ అధికారులు గోశాలలో పిల్లులను పెంచుకుంటూ వాటి నుంచి తైలాన్ని సేకరించేవారు. వన్య ప్రాణి అయిన పునుగు పిల్లిని పెంచుకోవడం చట్ట ప్రకారం తప్పు అంటూ జీవకారుణ్య పర్యావరణ సంరక్షణా సంఘాలు గోశాలలో పునుగు పిల్లుల పెంపకంపై అభ్యంతరం వ్యక్తం చేశాయి. దైవ కార్యక్రమాలకు వన్య ప్రాణుల సేవలను వినియోగించుకోవచ్చుననే క్లాజును ఆసరాగా చేసుకుని పునుగుపిల్లుల పెంపకానికి తిరుమల తిరుపతి దేవస్థానానికి కేంద్ర జూ అధారిటీ అనుమతి ఇచ్చింది.
పునుగు తైలం తీసే విధానంలో ప్రత్యేకత ఉంది. ఇనుప జల్లెడలోని గదిలో పిల్లిని ఉంచుతారు. ఇనుప జల్లెడ గది పైభాగంలో రంధ్రం ఏర్పాటు చేస్తారు. రంధ్రం ద్వారా చందనపు కర్రను గదిలోకి నిలబెడతారు. రెండు సంవత్సరాల వయస్సు అనంతరం ప్రతి పది రోజులకు ఒకసారి హావభావాలను ప్రదర్శిస్తూ చందనపు కర్రకు చర్మాన్ని పిల్లి రుద్దుతుంది. ఆ సమయంలో చర్మంద్వారా వెలువడే పదార్థమే పునుగుతైలం.
పునుగు పిల్లిని కొన్ని అటవీ తెగలవారు వేటాడి చంపి తింటున్నారు. ఈ కారణంగా భారత దేశంలో పునుగు పిల్లి అంతరించిపోయే దశలో ఉంది. అందువల్ల పునుగు పిల్లిని కలిగియుండటం చట్టరిత్యా నేరమని ప్రభుత్వ జి.వొ జారీ అయ్యింది. దేశంలో పునుగు పిల్లుల సంఖ్య పెరగాల్సిన ఆవశ్యకత ఎంతైనా ఉంది.
(వ్యాసము విస్తరణలో ఉన్నది)
పునుగు పిల్లి (ఆంగ్లం Civet) ( (Paradoxurus hermaphroditus) ) ఒక రకమైన జంతువు. Viverridae కుటుంబానికి చెందిన దీన్ని ఆంగ్లంలో Civet Cat అని, Toddy Cat అని అంటారు. పునుగు పిల్లులలో 38 జాతులు ఉన్నాయి. అయితే ఆసియా రకానికి విశిష్టత ఉంది. దీని గ్రంథుల నుండి జవాది లేదా పునుగు అనే సుగంధ ద్రవ్యము లభిస్తుంది.
పునుగు పిల్లి భారత్, శ్రీలంక, మియాన్మార్, భూటాన్, థాయ్ లాండ్, సింగపూర్, కంబోడియా, మలేషియా, జపాన్ వగైరా దేశాల్లో కనిపిస్తుంది.